Devshayani Ekadashi

देवशयनी एकादशी

देवशयनी एकादशी, जिसे हरिशयनी एकादशी या पद्मा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखती है। यह एकादशी आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष में आती है और इसे भगवान विष्णु के शयनकाल का प्रारंभ माना जाता है। इस दिन से भगवान विष्णु चार महीने के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं, जिसे ‘चातुर्मास’ कहा जाता है। इस समयावधि में भगवान विष्णु के शयनकाल का महत्व और भी बढ़ जाता है, क्योंकि यह आध्यात्मिक उन्नति और तपस्या के लिए अनुकूल माना जाता है।

देवशयनी एकादशी का महत्व

देवशयनी एकादशी का धार्मिक महत्व अत्यंत उच्च है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन व्रत करने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। भगवान विष्णु के भक्त इस दिन विशेष पूजा-अर्चना और व्रत रखते हैं। देवशयनी एकादशी का पालन करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख-शांति का संचार होता है। इस दिन व्रत रखने वाले भक्तों को भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है और वे सभी प्रकार के कष्टों से मुक्त हो जाते हैं।

देवशयनी एकादशी शुभ मुहूर्त

आषाढ शुक्ल पक्ष की एकादशी दिनांक 16 जुलाई मंगलवार रात्रि 08:33 से शुरू होगी और इसका समापन 17 जुलाई बुधवार को रात्रि 09:02 पर होगा अतः यह व्रत उदयातिथि के अनुसार दिनांक 17 जुलाई बुधवार को रखा जाएगा वही इसका पारण 18 जुलाई दिन गुरुवार को किया जायेगा

Devshayani Ekadashi

देवशयनी एकादशी व्रत की विधि

एकादशी व्रत एक दिन पूर्व दशमी तिथि की रात्रि को व्रत रखने का संकल्प करना चाहिए

एकादशी व्रत के दिन प्रातः स्नान आदि से निर्वत होकर स्वच्छ कपडे धारण करें एवं आपने पूजा घर को साफ करें

अब हाथ मे तिल, फूल,जल लेकर एकादशी व्रत का संकल्प ले

शुभ मुहूर्त मे भगवान विष्णु की फोटो या मूर्ति एक चौकी पर कपड़ा बिछाकार स्थापित करें उस चौकी पर थोड़ा सा गेहूं रखें फिर उस गेहूं पर जल से भरा एक कलश स्थापित करें उस कलश मे एक सिक्का डाले फिर जल से भरे हुए कलश पर आम के या अशोक के पत्ते डाले और उसके ऊपर एक चौमुखी दिया प्रज्वलित करें

अब भगवान विष्णु को पंचामृत से स्नान कराये फिर शुद्ध जल से कराये एवं भगवान का श्रृंगार करें

अब फूल माला चढ़ाये एवं फल इत्यादि रखें

अब धूप, दीप शक़्कर हल्दी, तुलसी पत्र, पान का पत्ता सुपारी मिठाई केवल खोये की बनी वह अर्पित करें

इस दौरान ॐ भगवते वासुदेवाय:नमः मंत्र का उच्चारण करते रहे फिर विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें एवं व्रत कथा की पोथी पढ़े या सुने एवं दूसरों को भी सुनाये

पूजा के अंत मे घी के दीपक से एवं कपूर से भगवान विष्णु की आरती करे और अपनी मनोकामना पूर्ति की प्रार्थना करें इसके बाद जो फल्हार आपने बनाया हो उसका भोग लगाये एवं जल से आँचमन कराये एवं हाथ जोड़े दिन भर फल्हार पर रहे शाम को फिर आरती करें एवं भोग लगाये अगले दिन स्नान आदि के बाद भगवान विष्णु की पूजा करें किसी ब्राह्मण को भोजन कराये या अन्न, वस्त्र, फल,मिठाई का दान करें एवं उचित दक्षिणा देकर विदा करें

अब खुद भी पारण करें इस प्रकार व्रत करने से भगवान विष्णु की असीम कृपा प्राप्त होती है

देवशयनी एकादशी की कथा

कथा 1: राजा मांधाता की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, सतयुग में मांधाता नामक एक राजा ने देवशयनी एकादशी का व्रत किया था। राजा मांधाता को इस व्रत के प्रभाव से अपने राज्य में सुख-शांति और समृद्धि प्राप्त हुई। यह कथा इस प्रकार है:

राजा मांधाता का राज्य बहुत ही सुखी और समृद्ध था, लेकिन एक समय ऐसा आया जब उनके राज्य में भयंकर अकाल पड़ा। इस अकाल के कारण प्रजा बहुत ही दुखी हो गई। राजा ने इस समस्या का समाधान खोजने के लिए अनेक यज्ञ और पूजा-अर्चना की, लेकिन कोई भी उपाय सफल नहीं हुआ।

तब राजा मांधाता ने ऋषि अंगिरा से परामर्श लिया। ऋषि अंगिरा ने राजा को देवशयनी एकादशी का व्रत करने का सुझाव दिया। राजा मांधाता ने ऋषि के सुझाव को मानकर विधि-विधान से देवशयनी एकादशी का व्रत किया। व्रत के प्रभाव से उनके राज्य में पुनः सुख-शांति और समृद्धि का संचार हुआ और अकाल समाप्त हो गया।

कथा 2: बलि राजा और भगवान विष्णु की कथा

एक अन्य कथा के अनुसार, भगवान विष्णु ने बलि राजा को वरदान देकर उन्हें पाताल लोक का राजा बना दिया था और स्वयं योग निद्रा में चले गए थे। यह कथा इस प्रकार है:

बलि राजा एक महान दानी और पराक्रमी राजा थे। उनकी दानशीलता और पराक्रम से देवगण भयभीत हो गए और उन्होंने भगवान विष्णु से सहायता मांगी। भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण किया और बलि राजा से तीन पग भूमि दान में मांगी। बलि राजा ने वामन भगवान को तीन पग भूमि देने का वचन दिया।

वामन भगवान ने अपना विशाल रूप धारण कर पहले पग में स्वर्ग और दूसरे पग में पृथ्वी नाप ली। तीसरे पग के लिए बलि राजा ने अपना सिर प्रस्तुत कर दिया। भगवान विष्णु ने बलि राजा को वरदान दिया और उन्हें पाताल लोक का राजा बना दिया। इसके बाद भगवान विष्णु योग निद्रा में चले गए।

चातुर्मास का महत्व

देवशयनी एकादशी से चातुर्मास की शुरुआत होती है। यह चार महीने का अवधि विशेष रूप से तपस्या, ध्यान और साधना के लिए उत्तम मानी जाती है। चातुर्मास के दौरान भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना से विशेष फल प्राप्त होता है। इस अवधि में विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश जैसे मांगलिक कार्य वर्जित माने जाते हैं।

चातुर्मास का समय अध्यात्मिक उन्नति के लिए अनुकूल होता है। इस समयावधि में व्यक्ति को साधना, ध्यान, तपस्या और धार्मिक कार्यों में संलग्न रहना चाहिए। चातुर्मास के दौरान साधना और तपस्या से व्यक्ति को आत्मशुद्धि और आत्मानुभूति की प्राप्ति होती है।

देवशयनी एकादशी का वैज्ञानिक महत्व

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी देवशयनी एकादशी का अपना महत्व है। आषाढ़ माह में मौसम में परिवर्तन होता है और वर्षा ऋतु का आगमन होता है। इस समय शरीर को विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है। व्रत रखने से शरीर का पाचन तंत्र ठीक रहता है और विषाक्त पदार्थों का निष्कासन होता है।

व्रत रखने से शरीर को विषमुक्त किया जा सकता है। इसके अलावा, मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। देवशयनी एकादशी का व्रत व्यक्ति को अनुशासन और संयम सिखाता है, जो संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है।

देवशयनी एकादशी के दौरान क्या करें और क्या न करें

क्या करें

  • सात्विक भोजन: व्रत के दौरान सात्विक और हल्का भोजन ग्रहण करें। सात्विक भोजन में फल, दूध, दही, मेवा और सादा भोजन शामिल होता है।
  • पूजा-पाठ: भगवान विष्णु की पूजा और उनके मंत्रों का जाप करें। “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप विशेष फलदायी माना जाता है।
  • दान-पुण्य: जरूरतमंदों को दान दें और पुण्य अर्जित करें। दान करने से व्यक्ति के पापों का नाश होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है।
  • ध्यान और साधना: इस दिन विशेष ध्यान और साधना करें। ध्यान और साधना से मन को शांति मिलती है और आत्मिक उन्नति होती है।

क्या न करें

  • तामसिक भोजन: मांस, मदिरा और तामसिक भोजन से परहेज करें। तामसिक भोजन से शरीर और मन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
  • नकारात्मक विचार: मन में नकारात्मक विचार न आने दें और शांति बनाए रखें। नकारात्मक विचार व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं।
  • अन्य कार्य: व्रत के दौरान अनावश्यक कार्यों में समय न गंवाएं और ध्यान साधना पर ध्यान केंद्रित करें। अनावश्यक कार्यों से मन विचलित होता है और साधना में बाधा आती है।

देवशयनी एकादशी के लाभ

देवशयनी एकादशी का व्रत अनेक लाभ प्रदान करता है। यह न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसके स्वास्थ्य संबंधी लाभ भी हैं। आइए जानते हैं देवशयनी एकादशी के कुछ प्रमुख लाभ:

धार्मिक और आध्यात्मिक लाभ

  • मोक्ष की प्राप्ति: देवशयनी एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह व्रत व्यक्ति को पापों से मुक्त करता है और आत्मिक शुद्धि प्रदान करता है।
  • भगवान विष्णु की कृपा: इस दिन व्रत और पूजा करने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है। भगवान विष्णु की कृपा से व्यक्ति के सभी कष्ट दूर होते हैं और सुख-शांति का संचार होता है।
  • आध्यात्मिक उन्नति: देवशयनी एकादशी का व्रत व्यक्ति को आध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर करता है। इस व्रत के माध्यम से व्यक्ति अपने जीवन में आध्यात्मिक जागरूकता प्राप्त करता है।

स्वास्थ्य संबंधी लाभ

  • शारीरिक शुद्धि: व्रत रखने से शरीर का पाचन तंत्र ठीक रहता है और विषाक्त पदार्थों का निष्कासन होता है। व्रत के दौरान हल्का और सात्विक भोजन ग्रहण करने से शरीर शुद्ध होता है।
  • मानसिक शांति: देवशयनी एकादशी का व्रत और ध्यान व्यक्ति को मानसिक शांति प्रदान करता है। ध्यान और साधना से मन की अशांति दूर होती है और मानसिक संतुलन बना रहता है।
  • संयम और अनुशासन: व्रत के माध्यम से व्यक्ति में संयम और अनुशासन की भावना विकसित होती है। संयम और अनुशासन से व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आते हैं।

देवशयनी एकादशी की प्राचीन परंपराएं

देवशयनी एकादशी की प्राचीन परंपराएं और रीति-रिवाज भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। ये परंपराएं हमारे पूर्वजों द्वारा स्थापित की गई थीं और आज भी इनका पालन किया जाता है। आइए जानते हैं कुछ प्रमुख परंपराएं:

रात्रि जागरण

देवशयनी एकादशी की रात को रात्रि जागरण का विशेष महत्व है। भक्त पूरी रात जागकर भगवान विष्णु का ध्यान और भजन-कीर्तन करते हैं। रात्रि जागरण से व्यक्ति को आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होते हैं और भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

भजन-कीर्तन

इस दिन भक्त भजन-कीर्तन का आयोजन करते हैं। भजन-कीर्तन से वातावरण में पवित्रता और शांति का संचार होता है। भक्त भगवान विष्णु के भजनों का गायन करते हैं और उनकी महिमा का गुणगान करते हैं।

व्रत कथा का श्रवण

देवशयनी एकादशी के दिन व्रत कथा का श्रवण भी महत्वपूर्ण माना जाता है। व्रत कथा का श्रवण करने से व्यक्ति को व्रत का महत्व और उसकी महिमा का ज्ञान होता है। व्रत कथा सुनने से भक्तों में भक्ति और श्रद्धा की भावना बढ़ती है।

Devshayani Ekadashi

देवशयनी एकादशी की वर्तमान समय में प्रासंगिकता

आज के आधुनिक समय में भी देवशयनी एकादशी की प्रासंगिकता बनी हुई है। यह व्रत न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसके स्वास्थ्य और मानसिक शांति के लिए भी विशेष महत्व है। आज की भागदौड़ भरी जीवनशैली में देवशयनी एकादशी का व्रत व्यक्ति को शांति और संतुलन प्रदान करता है।

वर्तमान समय में, जब लोग तनाव और अवसाद से ग्रस्त होते हैं, देवशयनी एकादशी का व्रत और ध्यान उन्हें मानसिक शांति प्रदान करता है। इसके अलावा, व्रत रखने से व्यक्ति के शारीरिक स्वास्थ्य में भी सुधार होता है। व्रत और ध्यान से शरीर और मन दोनों का शुद्धिकरण होता है।

उपसंहार

देवशयनी एकादशी का व्रत हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इसके धार्मिक, वैज्ञानिक और आध्यात्मिक लाभ असीमित हैं। इस पवित्र दिन का सही विधि-विधान से पालन करने से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का संचार होता है। देवशयनी एकादशी का व्रत व्यक्ति को पापों से मुक्त करता है और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है।

Devshayani Ekadashi

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