Karva Chauth Pujan Vidhi
उत्तर भारत में विवाहित महिलाओं द्वारा बड़े पैमाने में Karva Chauth का पर्व मनाया जाता है इस एक दिवसीय पर्व को चरम उत्साह तथा श्रद्धा से मनाया जाता है। करवा चौथ के दिन पूरे दिन के उपवास का अनुष्ठान किया जाता है जिसे करवा चौथ व्रत अथवा करवा चौथ उपवास कहा जाता है। इस दिन विवाहित महिलाएं सूर्योदय से चंद्रोदय तक कठोर व्रत रख कर अपने पति के जीवन की सुरक्षा तथा दीर्धायु सुनिश्चित करने के लिए प्रार्थना करती हैं। करवा चौथ मुख्यत: हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, गुजरात और राजस्थान राज्यों में मनाया जाता है।
करवा चौथ कब है?
कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष कि चतुर्थी को मनाया जाता है। Karva Chauth के मांगलिक अवसर पर कुँवारी युवतियां उत्तम वर तथा विवाहित स्त्रीयां पति की लम्बी आयु तथा समृधि के लिए व्रत रखती हैं। करवा चौथ विभिन्न प्रदेशों में विभिन्न नामों से जाना जा सकता है परन्तु सभी स्थान पर इसका महत्व तथा पालन की जाने वाली परम्पराएं एक समान हैं।
करवा चौथ, कई बार संकष्ठी चतुर्थी, जो भगवान् श्रीगणेश के लिए व्रत का दिन होता के साथ मनाया जाता है। इस दिन अपने पति की लम्बी आयु की कामना करते हुए विवाहिताएं भगवान् शंकर की पूजा करती हैं. इस दिन, श्री गणेश सहित शिव परिवार की आराधना की जाती है तथा चन्द्रमा के दर्शन कर व्रत तोड़ा जाता है। चंद्रोदय के बाद चन्द्रमा को जल अर्पित किया जाता है। यह अति कठिन व्रत है जिसमे सूर्योदय तक जल की एक बूँद अथवा भोजन का एक भी ग्रास ग्रहण करना वर्जित हैं।
करवा चौथ को कर्क चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है. चन्द्रमा को मिट्टी के जिस पात्र से जल अर्पित किया जाता है उसे करवा अथवा कर्क के नाम से भी जाना जाता है। चंद्रमा को जल अर्पित करने की प्रक्रिया को अर्घ कहा जाता है। करवा चौथ पूजन में कर्क का अत्यधिक महत्व है तथा इसका किसी योग्य स्त्री अथवा ब्राहमण को दान में दिया जाता है।
मान्यता है कि सबसे पहले करवा चौथ का व्रत मां पार्वती ने अपने पति भगवान शिव के लिए रखा था। इस व्रत को रखने के बाद मां पार्वती अखंड सौभाग्य की प्राप्ति हुई थी। इसलिए व्रत में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है।
विधि *
1*करवाचौथ का व्रत सूर्योदय से ही आरंभ हो जाता है इसका समापन शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देने के पश्चात होता है .
2*चंद्रमा को अर्ध्य देने के पश्चात महिलाएं अपने पति के हाथों से पानी पीती हैं और अपने पति को भोजन कराने के पश्चात ही स्वयं भोजन ग्रहण करती हैं.
3* करवाचौथ की कथा शाम के समय चंद्रमा निकलने से पूर्व ही कर ली जाती है.
4* जबस्त्रियां करवा चौथ की पूजा करने जाएं तो उन्हें अपना चेहरा पूरब की तरफ करना चाहिए .
5*करवाचौथ का व्रत निर्जला होता है इसीलिए ना तो उस दिन कुछ भी खाना खाना चाहिए ना इस दिन जल ग्रहण करना चाहिए .
6* विधिवत पूजा करके तांबे या मिट्टी के पात्र में चावल, उड़द की दाल, सुहाग की निशानी, जैसे- सिंदूर, चूडियां शीशा, कंघी, रिबन और रुपया रखकर किसी सुहागिन स्त्री या अपनी सास के पांव छूकर उन्हें भेंट करनी चाहिए.
Karva Chauth व्रत सामग्री
जैसा कि आप को पता है कि करवा चौथ व्रत सुहाग से संबंधित है।
1. Karva Chauth व्रत में पूजा के लिए आप को मिट्टी का एक करवा और उसका ढक्कन चाहिए।
2. मां गौरी या चौथ माता एवं गणेश जी की मूर्ति बनाने के लिए काली या पीली मिट्ठी चाहिए।
3. पानी के लिए एक लोटा
4. गंगा जल
5. गाय का कच्चा दूध, दही एवं देसी घी
6. अगरबत्ती, रूई और एक दीपक
7. अक्षत, फूल, चंदन, रोली, हल्दी और कुमकुम
8. मिठाई, शहद, चीनी और उसका बूरा
9. बैठने के लिए आसन
10. इत्र, मिश्री, पान एवं खड़ी सुपारी
11. पूजा के लिए पंचामृत
12. अर्घ्य के समय छलनी
13. भोग के लिए फल एवं हलवा-पूड़ी
14. सुहाग सामग्री: महावर, मेहंदी, बिंदी, सिंदूर, चूड़ी, कंघा, बिछुआ, चुनरी आदि।
जानें पूजा की थाली के लिए किन चीजों की होगी जरूरत
करवाचौथ पर महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं और श्रृंगार की सामग्री का भेंट भी करती है। सभी सामान नए और कोरे होने चाहिए। सभी सुहाग की सामग्री दो की संख्या में खरीदें। एक खुद के लिए और एक सास की थाली के लिए।
चंद्र पूजन सामग्री
चंद्रमा के दर्शन के लिए थाली तैयार करनी होगी। इसके लिए थाली मैं दीपक, सिन्दूर, अक्षत, कुमकुम, रोली तथा चावल की बनी मिठाई बनानी होगी। चंद्रदेव को जल देने के लिए करवा।
पूजन सामग्री के लिए
कुंकुम, शहद, अगरबत्ती, पुष्प, कच्चा दूध, शक्कर, शुद्ध घी, दही, मेंहदी, मिठाई, गंगाजल, चंदन, चावल, सिन्दूर, मेंहदी, महावर, कंघा, बिंदी, चुनरी, चूड़ी, बिछुआ, मिट्टी का टोंटीदार करवा व ढक्कन, दीपक, रुई, कपूर, गेहूँ, शक्कर का बूरा, हल्दी, पानी का लोटा, गौरी बनाने के लिए पीली मिट्टी, लकड़ी का आसन, छलनी, आठ पूरियों की अठावरी, हलुआ, दक्षिणा के लिए पैसे, तैयार कर रख लें।
सुहाग की सामग्री के लिए
साड़ी और सुहाग की सामग्री जैसे चुड़ियां, बिंदी, बिछिया, महावर, नेलपॉलिश, सिंदूर आदि को पहले से खरीद रख लें। साड़ी के फॉल, पिको, ब्लाउज आदि को बनवा कर तैयार करा लें। करवाचौथ की पूजा यदि पहली बार करने जा रही तो करवाचौथ कथा की किताब भी खरीद लें। सास के लिए सुहाग का सामान अपनी तैयारी करते हुए साथ साथ कर लें। साड़ी, चूड़ियां, बिंदी, मेहंदी, महावर आदि इसमें जरूर रखें।
करवा-दीपक और छलनी
दीपक, मिट्टी के दो करवे और छलनी ही इस इस त्योहार के प्रमुख पूजन सामग्री हैं।
करवा चौथ की विधि :
सूर्योदय से पहले स्नान करके व्रत रखने का संकल्प लें।
फिर मिठाई, फल, सेंवई और पूड़ी की सरगी ग्रहण कर व्रत शुरू करें।
संपूर्ण शिव परिवार और श्रीकृष्ण की स्थापना करें।
गणेश जी को पीले फूलों की माला, लड्डू और केले चढ़ाएं।
भगवान शिव और पार्वती को बेलपत्र और श्रृंगार की वस्तुएं अर्पित करें।
श्रीकृष्ण को माखन-मिश्री और पेड़े का भोग लगाएं।
उनके सामने मोगरा या चन्दन की अगरबत्ती और घी का दीपक जलाएं।
मिटटी के कर्वे पर रोली से स्वस्तिक बनाएं।
कर्वे में दूध, जल और गुलाब जल मिलाकर रखें और रात को छलनी के प्रयोग से चंद्र दर्शन करें और चन्द्रमा को अर्घ्य दें।
इस दिन महिलाएं सोलह श्रृंगार जरूर करें, इससे सौंदर्य बढ़ता है।
इस दिन करवा चौथ की कथा कहनी या फिर सुननी चाहिए।
कथा सुनने के बाद अपने घर के सभी बड़ों का चरण स्पर्श करना चाहिए।
पति की दीर्घायु की कामना कर पढ़ें यह मंत्र : –
‘नमस्त्यै शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं संतति शुभा। प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे।’
करवे पर 13 बिंदी रखें और गेहूं या चावल के 13 दाने हाथ में लेकर Karva Chauth की कथा कहें या सुनें। कथा सुनने के बाद करवे पर हाथ घुमाकर अपनी सासुजी के पैर छूकर आशीर्वाद लें और करवा उन्हें दे दें। 13 दाने गेहूं के और पानी का लोटा या टोंटीदार करवा अलग रख लें।
विशेष : चन्द्रमा निकलने के बाद छलनी की ओट से उसे देखें और चन्द्रमा को अर्घ्य दें। इसके बाद पति से आशीर्वाद लें। उन्हें भोजन कराएं और स्वयं भी भोजन कर लें
Karva Chauth व्रत कथा
बहुत समय पहले इन्द्रप्रस्थपुर के एक शहर में वेदशर्मा नाम का एक ब्राह्मण रहता था। वेदशर्मा का विवाह लीलावती से हुआ था जिससे उसके सात महान पुत्र और वीरावती नाम की एक गुणवान पुत्री थी। क्योंकि सात भाईयों की वीरावती केवल एक अकेली बहन थी जिसके कारण वह अपने माता-पिता के साथ-साथ अपने भाईयों की भी लाड़ली थी।
जब वह विवाह के लायक हो गयी तब उसकी शादी एक उचित ब्राह्मण युवक से हुई। शादी के बाद वीरावती जब अपने माता-पिता के यहाँ थी तब उसने अपनी भाभियों के साथ पति की लम्बी आयु के लिए करवा चौथ का व्रत रखा। करवा चौथ के व्रत के दौरान वीरावती को भूख सहन नहीं हुई और कमजोरी के कारण वह मूर्छित होकर जमीन पर गिर गई।
सभी भाईयों से उनकी प्यारी बहन की दयनीय स्थिति सहन नहीं हो पा रही थी। वे जानते थे वीरावती जो कि एक पतिव्रता नारी है चन्द्रमा के दर्शन किये बिना भोजन ग्रहण नहीं करेगी चाहे उसके प्राण ही क्यों ना निकल जायें। सभी भाईयों ने मिलकर एक योजना बनाई जिससे उनकी बहन भोजन ग्रहण कर ले। उनमें से एक भाई कुछ दूर वट के वृक्ष पर हाथ में छलनी और दीपक लेकर चढ़ गया। जब वीरावती मूर्छित अवस्था से जागी तो उसके बाकी सभी भाईयों ने उससे कहा कि चन्द्रोदय हो गया है और उसे छत पर चन्द्रमा के दर्शन कराने ले आये। वीरावती ने कुछ दूर वट के वृक्ष पर छलनी के पीछे दीपक को देख विश्वास कर लिया कि चन्द्रमा वृक्ष के पीछे निकल आया है। अपनी भूख से व्याकुल वीरावती ने शीघ्र ही दीपक को चन्द्रमा समझ अर्घ अर्पण कर अपने व्रत को तोड़ा। वीरावती ने जब भोजन करना प्रारम्भ किया तो उसे अशुभ संकेत मिलने लगे। पहले कौर में उसे बाल मिला, दुसरें में उसे छींक आई और तीसरे कौर में उसे अपने ससुराल वालों से निमंत्रण मिला। पहली बार अपने ससुराल पहुँचने के बाद उसने अपने पति के मृत शरीर को पाया।
अपने पति के मृत शरीर को देखकर वीरावती रोने लगी और Karva Chauth के व्रत के दौरान अपनी किसी भूल के लिए खुद को दोषी ठहराने लगी। वह विलाप करने लगी। उसका विलाप सुनकर देवी इन्द्राणी जो कि इन्द्र देवता की पत्नी है, वीरावती को सान्त्वना देने के लिए पहुँची।
वीरावती ने देवी इन्द्राणी से पूछा कि Karva Chauth के दिन ही उसके पति की मृत्यु क्यों हुई और अपने पति को जीवित करने की वह देवी इन्द्राणी से विनती करने लगी। वीरावती का दुःख देखकर देवी इन्द्राणी ने उससे कहा कि उसने चन्द्रमा को अर्घ अर्पण किये बिना ही व्रत को तोड़ा था जिसके कारण उसके पति की असामयिक मृत्यु हो गई। देवी इन्द्राणी ने वीरावती को करवा चौथ के व्रत के साथ-साथ पूरे साल में हर माह की चौथ को व्रत करने की सलाह दी और उसे आश्वासित किया कि ऐसा करने से उसका पति जीवित लौट आएगा।
इसके बाद वीरावती सभी धार्मिक कृत्यों और मासिक उपवास को पूरे विश्वास के साथ करती। अन्त में उन सभी व्रतों से मिले पुण्य के कारण वीरावती को उसका पति पुनः प्राप्त हो गया।
कुछ ऐसे संप्रदाय हैं, जहां कुंवारी लड़किया भी Karva Chauth का व्रत रखती हैं। इनमें कुछ लड़कियां ऐसी होती हैं, जिनकी शादियां तय हो जाती हैं, जो अपने मंगेतर के लिए व्रत रखती हैं और कुछ योग्य वर की प्राप्ति के लिए करवा माता का व्रत रखती हैं। लेकिन कुंवारी लड़कियों के लिए करवा चौथ की पूजा से संबंधित कुछ नियम अलग होते हैं, जिनके प्रयोग से आसानी से करवा चौथ का व्रत रख सकती हैं… अविवाहित लड़कियों को भी व्रत का नियमानुसार पालन करना होता है लेकिन उनके लिए पूजा से संबंधित कुछ नियम अलग होते हैं। जो इनको विवाहित महिलाओं के व्रत से अलग करते हैं…
व्रत में कुंवारी लड़कियों को नहीं होगी इनकी जरूरत कुंवारी लड़कियों को निर्जला व्रत रखने की आवश्यकता नहीं है, वह निराहार भी व्रत रह सकती हैं। शादी के बाद वह निर्जला व्रत रखें क्योंकि आपकी शादी नहीं हुई है तो आपके लिए सरगी की आवश्यकता नहीं है और न ही आप कोई बायना निकालेंगी। कुंवारी लड़कियां को व्रत के दौरान केवल करवा माता, भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करनी चाहिए और कथा सुननी चाहिए।
करवा चौथ पर बचें इन 5 रंगों से… जानिए क्यों?
काला : यह रंग अशुभता का प्रतीक है। इस रंग का प्रयोग सिवाय मंगलसूत्र के दानों के परिधान या श्रृंगार में न करें।
सफेद : यह रंग यू तो शांति और सौम्यता का प्रतीक है लेकिन सादगी का यह रंग श्रृंगार के पर्व पर वर्जित माना जाता है। उपवास वाले दिन महिलाओं को किसी अन्य व्यक्ति को शकर, दूध, दही, चावल और सफेद वस्त्र नहीं देने चाहिए।
नीला : यह रंग अत्यंत खूबसूरत है लेकिन उत्तरप्रदेश और राजस्थान के कुछ भागों में मोर की गर्दन वाले नीले रंग को पूजा कार्यों में नहीं शामिल किया जाता है। अत: इस दिन इस रंग से भी बचें।
भूरा : यह रंग भी आंखों को नहीं लुभाता है और त्योहार पर कोशिश यह होनी चाहिए कि आंखों को सुंदर लगने वाले रंग ही पहने जाएं।
यह रंग राहु और केतु का प्रतिनिधित्व करता है। अत: भूरे रंग से भी यथासंभव बचें।
स्लेटी या कोई भी दबा हुआ हल्का रंग :
स्लेटीऔर इस तरह के मटमैले दबे रंग फैशन में इन हो सकते हैं लेकिन शुभ कार्यों में इनसे बचा जाना चाहिए।
Karva Chauth वाले दिन महिलाओं को विशेष तौर पर लाल परिधान ही पहनने चाहिए क्योंकि लाल रंग हिन्दू धर्म में शुभ का प्रतीक माना जाता है। इसके अतिरिक्त केसरिया, पीला, हरा, गुलाबी, मेजेंटा, महरून और शोख
रंग पहने जा सकते हैं। जहां तक संभव हो अपनी शादी का जोड़ा ही व्रत के दिन पहनें।