Makar Sankranti

Makar Sankranti

मकर संक्रांति 14 जनवरी को है। इस दिन सूर्य देव मकर राशि में प्रवेश करेंगे। वे दक्षिणायन से उत्तरायण होंगे। इसके साथ ही मांगलिक कार्यों जैसे विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश, सगाई आदि करने की अनुमति हो जाएगी। एक माह का खरमास भी इसके साथ ही समाप्त हो जाएगा। मकर संक्रांति के दिन स्नान और दान का विशेष महत्व बताया गया है। इस दिन दान करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।

Makar Sankranti

धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण

भारत में धार्मिक और सांस्कृतिक नजरिये से मकर संक्रांति का बड़ा ही महत्व है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव अपने पुत्र शनि के घर जाते हैं। चूंकि शनि मकर व कुंभ राशि का स्वामी है। लिहाजा यह पर्व पिता-पुत्र के अनोखे मिलन से भी जुड़ा है।
एक अन्य कथा के अनुसार असुरों पर भगवान विष्णु की विजय के तौर पर भी मकर संक्रांति मनाई जाती है। बताया जाता है कि मकर संक्रांति के दिन ही भगवान विष्णु ने पृथ्वी लोक पर असुरों का संहार कर उनके सिरों को काटकर मंदरा पर्वत पर गाड़ दिया था। तभी से भगवान विष्णु की इस जीत को मकर संक्रांति पर्व के तौर पर मनाया जाने लगा।

Makar Sankranti से जुड़े त्यौहार

भारत में मकर संक्रांति के दौरान जनवरी माह में नई फसल का आगमन होता है। इस मौके पर किसान फसल की कटाई के बाद इस त्यौहार को धूमधाम से मनाते हैं। भारत के हर राज्य में मकर संक्रांति को अलग-अलग नामों से मनाया जाता है।

पोंगल

पोंगल दक्षिण भारत में विशेषकर तमिलनाडु, केरल और आंध्रा प्रदेश में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण हिंदू पर्व है। पोंगल विशेष रूप से किसानों का पर्व है। इस मौके पर धान की फसल कटने के बाद लोग खुशी प्रकट करने के लिए पोंगल का त्यौहार मानते हैं। पोंगल का त्यौहार ’तइ’ नामक तमिल महीने की पहली तारीख यानि जनवरी के मध्य में मनाया जाता है। 3 दिन तक चलने वाला यह पर्व सूर्य और इंद्र देव को समर्पित है। पोंगल के माध्यम से लोग अच्छी बारिश, उपजाऊ भूमि और बेहतर फसल के लिए ईश्वर के प्रति आभार प्रकट करते हैं। पोंगल पर्व के पहले दिन कूड़ा-कचरा जलाया जाता है, दूसरे दिन लक्ष्मी की पूजा होती है और तीसरे दिन पशु धन को पूजा जाता है।

उत्तरायण

उत्तरायण खासतौर पर गुजरात में मनाया जाने वाला पर्व है। नई फसल और ऋतु के आगमन पर यह पर्व 14 और 15 जनवरी को मनाया जाता है। इस मौके पर गुजरात में पतंग उड़ाई जाती है साथ ही पतंग महोत्सव का आयोजन किया जाता है, जो दुनियाभर में मशहूर है। उत्तरायण पर्व पर व्रत रखा जाता है और तिल व मूंगफली दाने की चक्की बनाई जाती है।

लोहड़ी

लोहड़ी विशेष रूप से पंजाब में मनाया जाने वाला पर्व है, जो फसलों की कटाई के बाद 13 जनवरी को धूमधाम से मनाया जाता है। इस मौके पर शाम के समय होलिका जलाई जाती है और तिल, गुड़ और मक्का अग्नि को भोग के रूप में चढ़ाई जाती है।

माघ/भोगली बिहू

असम में माघ महीने की संक्रांति के पहले दिन से माघ बिहू यानि भोगाली बिहू पर्व मनाया जाता है। भोगाली बिहू के मौके पर खान-पान धूमधाम से होता है। इस समय असम में तिल, चावल, नरियल और गन्ने की फसल अच्छी होती है। इसी से तरह-तरह के व्यंजन और पकवान बनाकर खाये और खिलाये जाते हैं। भोगाली बिहू पर भी होलिका जलाई जाती है और तिल व नरियल से बनाए व्यंजन अग्नि देवता को समर्पित किए जाते हैं। भोगली बिहू के मौके पर टेकेली भोंगा नामक खेल खेला जाता है साथ ही भैंसों की लड़ाई भी होती है।

भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में मकर संक्रांति के पर्व को अलग-अलग तरह से मनाया जाता है। आंध्रप्रदेश, केरल और कर्नाटक में इसे संक्रांति कहा जाता है और तमिलनाडु में इसे पोंगल पर्व के रूप में मनाया जाता है। पंजाब और हरियाणा में इस समय नई फसल का स्वागत किया जाता है और लोहड़ी पर्व मनाया जाता है, वहीं असम में बिहू के रूप में इस पर्व को उल्लास के साथ मनाया जाता है। हर प्रांत में इसका नाम और मनाने का तरीका अलग-अलग होता है।

अलग-अलग मान्यताओं के अनुसार इस पर्व के पकवान भी अलग-अलग होते हैं, लेकिन दाल और चावल की खिचड़ी इस पर्व की प्रमुख पहचान बन चुकी है। विशेष रूप से गुड़ और घी के साथ खिचड़ी खाने का महत्व है। इसके अलावा तिल और गुड़ का भी मकर संक्राति पर बेहद महत्व है।

इसदिन सुबह जल्दी उठकर तिल का उबटन करके स्नान किया जाता है। इसके अलावा तिल और गुड़ के लड्डू एवं अन्य व्यंजन भी बनाए जाते हैं। इस समय सुहागन महिलाएं सुहाग की सामग्री काआदान प्रदान भी करती हैं। ऐसा माना जाता है कि इससे उनके पति की आयु लंबी होती है।

ज्योतिष की दृष्ट‍ि से देखें तो इस दिन सूर्य धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करता है और सूर्य के उत्तरायण की गति प्रारंभ होती है। सूर्य के उत्तरायण प्रवेश के साथ स्वागत-पर्व के रूप में मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है। वर्ष भर में बारह राशियों मेष, वृषभ, मकर, कुंभ, धनु इत्यादि में सूर्य के बारह संक्रमण होते हैं और जब सूर्य धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करता है, तब मकर संक्रांति होती है। सूर्य के उत्तरायण होने के बाद से देवों की ब्रह्म मुहूर्त उपासना का पुण्यकाल प्रारंभ हो जाता है। इस काल को ही परा-अपरा विद्या की प्राप्ति का काल कहा जाता है। इसे साधना का सिद्धि काल भी कहा गया है। इस काल में देव प्रतिष्ठा, गृह निर्माण, यज्ञ कर्म आदि पुनीत कर्म किए जाते हैं।

मकर संक्रांति को स्नान और दान का पर्व भी कहा जाता है। इस दिन तीर्थों एवं पवित्र नदियों में स्नान का बेहद महत्व है साथ ही तिल, गुड़, खिचड़ी, फल एवं राशि अनुसार दान करने पर पुण्य की प्राप्ति होती है। ऐसा भी माना जाता है कि इस दिन किए गए दान से सूर्य देवता प्रसन्न होते हैं।

महाभारत में भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण होने पर ही माघ शुक्ल अष्टमी के दिन स्वेच्छा से शरीर का परित्याग किया था। उनका श्राद्ध संस्कार भी सूर्य की उत्तरायण गति में हुआ था। फलतः आज तक पितरों की प्रसन्नता के लिए तिल अर्घ्य एवं जल तर्पण की प्रथा मकर संक्रांति के अवसर पर प्रचलित है। इन सभी मान्यताओं के अलावा मकर संक्रांति पर्व एक उत्साह और भी जुड़ा है। इस दिन पतंग उड़ाने का भी विशेष महत्व होता है। इस दिन कई स्थानों पर पतंग बाजी के बड़े-बड़े आयोजन भी किए जाते हैं। लोग बेहद आनंद और उल्लास के साथ पतंग बाजी करते हैं।

Makar Sankranti को गंगा स्नान का महत्व

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, मकर संक्रांति के दिन ही गंगा जी भगीरथ के पीछे-पीछे कपिल मुनि के आश्रम से होते हुए सागर में मिल गई थीं, इसीलिए मकर संक्रांति को गंगा स्नान का विशेष महत्व होता है।

Makar Sankranti पर क्या दान करें

मकर संक्रांति के दिन पुण्य काल में स्नान के बाद सूर्य उपासना, जप, अनुष्ठान, दान-दक्षिणा देते हैं। दान में गुड़, काले तिल, खिचड़ी, कंबल और लकड़ी का विशेष दान होता है।

दान की विधि

स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें। जनेऊ पहनते हैं तो उसे बदल लें। उसके बाद पूरब की तरफ मुख करके हाथ में जल, अक्षत् (चावल) लेकर दान का संकल्प लें। फिर दान की वस्तु का दान करें। दान की गई वस्तुओं को स्वयं जाकर किसी योग्य ब्राह्मण या जरुरत मंद को दे दें। स्वयं जाकर दिया हुआ दान उत्तम दान माना जाता है। कभी भी क्रोध में दान न करें या कुपात्र को दान न दें। वह फलित नहीं होता है।

राशि अनुसार करें दान

मेष राशि

इस राशि के जातकों को मकर संक्रांति के दिन स्नान के बाद लाल वस्त्र, तांबे के बर्तन और मसूर की दाल का दान करना चाहिए।

वृषभ राशि

वृषभ राशि वालों को आज के दिन चावल, खिचड़ी, चांदी की वस्तुएं तथा घी का दान करना चाहिए। इससे कई गुणा अधिक पुण्य मिलता है।

मिथुन राशि

मिथुन राशि के जातकों को हरे और पीले वस्त्र, हरी सब्जी तथा मूंग का दान करना उत्तम रहता है।

कर्क राशि

कर्क राशि वालों को मकर संक्रांति के दिन सफेद वस्त्र, तंदुल और सफेद ऊन का दान करना श्रेष्ठ होता है।

सिंह राशि

सिंह राशि वाले लोगों को आज के अवसर पर स्नान के बाद गेहूं, गुड़, ताम्र पात्र और लाल कपड़े का दान उचित व्यक्ति को करना चाहिए।

कन्या राशि

मकर संक्रांति के दिन कन्या राशि वालों को गो अर्क, फल, खड़ाऊ और हरी घास का दान करना चाहिए। इससे उनको कई गुणा अधिक पुण्य प्राप्त होता है।

तुला राशि

तुला रा​शि के जातकों को मकर संक्रांति के दिन सूर्य उपासना के बाद सप्तधान एवं इत्र का दान करना चाहिए।

वृश्चिक राशि

मकर संक्रांति के दिन वृश्चिक राशि वालों को स्नान के बाद सूर्य देव की पूजा करनी चाहिए। फिर गेहूं, गुड़ और लाल वस्त्र का दान करें।

धनु राशि

आज के दिन धन राशि वालों को शक्कर, हल्दी, स्वर्ण और पीले वस्त्र का दान करना चाहिए। यह उत्तम फल देने वाला होता है।

मकर राशि

मकर राशि वाले जातकों को संक्रांति के दिन काली चीजों का दान करना चाहिए। जैसे काला कंबल और काले तिल का दान करना अच्छा होता है।

कुंभ राशि

मकर संक्रांति के दिन कुंभ राशि वालों को गाय का घी तथा काले वस्त्र का दान करना चाहिए। यह कई गुणा फल देने वाला होता है।

मीन राशि

मीन राशि वालों को इस दिन चने की दाल, धर्म ग्रंथ तथा पीले वस्त्र का दान करना चाहिए। य​ह उनके लिए कल्याणकारी होता है।

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